महावीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ? – Mahaveer ka janm kahan hua tha

Mahaveer ka janm kahan hua tha :- शायद ही कोई हो जो भगवान महावीर के नाम से परिचित न हो। भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर थे जिन्होंने कठोर तपस्या करने के बाद ज्ञान की प्राप्ति की और लोगों को सही दिशा में चलने के लिए उपदेश दिए।

भगवान महावीर के बाद जैन धर्म में कोई भी तीर्थंकर नहीं हुआ है। पर क्या आप जानते हैं, कि जैन धर्म में माने जाने वाले आखिरी तीर्थंकर Mahaveer ka janm kahan hua tha ?

यदि आप भगवान महावीर की जीवनी जानने के बारे में रुचि रखते हैं, तो इस लेख में दिए जानकारी को आखिर तक जरूर पढ़ें। इस लेख के माध्यम से आप Mahaveer ka janm kahan hua tha ? तथा स्वामी महावीर के द्वारा दिए गए उपदेश के बारे में जानेंगे।


महावीर स्वामीजीवन परिचय

महावीर का जन्म 540 ईसवी पूर्व हुआ था।  उनका बचपन का नाम वर्धमान था। इन्हें अन्य नाम जैसे अतिवीर, वीर, भगवान बुद्ध, विदेह और वैशालीय नाम से भी जाना जाता था। यह  ज्ञात्त्रिक क्षत्रिय जाति से संबंध रखते थे

इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम त्रिशला था। इनका एक भाई नंदीवर्धन और एक बहन सुदर्शना थी। इनकी पत्नी यशोदा, एक पुत्री प्रियदर्शनी और दामाद जमाली था।

इन्होंने लगभग 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर दिया था और यह जिंभिक ग्राम के नजदीक रिजुपालिका नदी के किनारे बहुत सालों तक एक पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या में लीन रहे और लगभग 42 साल की उम्र मे ज्ञान प्राप्ति की।

ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद इन्हें महावीर, केवलीन, जिन इत्यादि के नाम से जाना जाने लगा। इन्होंने अपना पहला उपदेश राजगृह के समीप बराकर नदी के किनारे दिया था। उनकी मृत्यु 72 वर्ष की आयु में हुई थी।


महावीर का जन्म कहां हुआ था ? ( Mahaveer ka janm kahan hua tha ? )

महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के नजदीक कुंडग्राम के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनका जन्म इक्ष्वाकु वश में हुआ था।


महावीर स्वामी का प्रारंभिक जीवन

महावीर स्वामी के पिता वैशाली गणराज्य के राजा थे। महावीर के जन्म पर उनके पिता बहुत अधिक खुश हुए थे उन्होंने और उन्होंने प्रजा को ऋण माफी, चुंगी कर माफ, राजस्व की दर जैसी रियायतें भी दी थी। इनके जन्म पर इनके पिता सिद्धार्थ के राजकोष में काफी बढ़ोतरी भी हुई थी और इसी कारण से इन्हें वर्धमान नाम दिया गया था।

जैन ग्रंथ उत्तर पुराण में इनके पांच नाम मिलते हैं – महावीर, अति वीर, वर्धमान, वीर और संम्ती। इन्हें 5 साल की आयु में गुरुकुल पढ़ने भेज दिया गया था। यह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। इनकी बचपन से ही आध्यात्मिक विषय में रुचि थी।


महावीर स्वामी का गृह त्याग

महावीर स्वामी के विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी परंतु उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार विवाह कर लिया और उन्हें विवाह के पश्चात एक पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुए।

जब महावीर के पिता की मृत्यु हुई तो उसके बाद उनके मन में वैराग्य लेने की इच्छा पैदा हुई उन्होंने अपने बड़े भाई नंदीवर्धन से गृह त्याग की आज्ञा मांगी, परंतु उनके भाई ने 2 साल रुकने के लिए कहा तो अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुए महावीर 2 साल रुके और उसके बाद 30 साल की उम्र में उन्होंने गृह त्याग कर दिया।

खंडवन नाम के स्थान पर अशोक वृक्ष के नीचे उन्होंने अपने सारे राजस्व वस्त्र त्याग दिए और संन्यासी के वस्त्र पहन लिए। जैन ग्रंथ के अनुसार सबसे पहले महावीर स्वामी कुंभार गांव में पहुंचे थे और वहीं पर उन्होंने तपस्या शुरू की थी।

उन्होंने 13 महीने वस्त्र पहने और उसके बाद स्वर्णवालुका नदी के किनारे वस्त्र भी त्याग दिए और वह नग्न अवस्था में रहने लगे। इसके बाद उन्हें दिगंबर नाम से जाना जाने लगा था।

इस बात का विरोध लोगों ने बहुत किया परंतु महावीर स्वामी अपने तप से टस से मस नहीं हुए।


महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति

महावीर स्वामी ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए 12 साल बहुत कठोर तपस्या की। इस दौरान इन्हे लोगों का विरोध भी सहना पड़ा, परंतु 42 वर्ष की आयु में इन्हे ज्रिम्भिकग्राम के नजदीक रिजुपालिका नदी के किनारे साल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई।

इनके द्वारा की गई कठोर तपस्या का वर्णन जैन साहित्य आचारान्ग सूत्र और कल्प सूत्र में मिलता है। ज्ञान प्राप्ति हो जाने के बाद महावीर स्वामी को निम्न नाम से जाना जाने लगा :-

  • महावीर
  • जिन
  • कैबलिन
  • निग्रंथ
  • अर्हम

भगवान महावीर के उपदेश

  1. अहिंसा

भगवान महावीर का कहना है कि मनुष्य को कभी भी अपने वचन, मन तथा कर्मों से हिंसा नहीं करनी चाहिए। जैन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए अहिंसा का पालन करना अनिवार्य था और यही महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत था वह अहिंसा को ही परम धर्म मानते हैं।

  1. सत्य

महावीर स्वामी का कहना था कि मनुष्य को हमेशा सत्य वचन ही बोलने चाहिए। वह कहते थे कि सच बोलने वाले व्यक्ति को मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  1. अस्तेय

महावीर भगवान कहते हैं कि कभी भी किसी भी मनुष्य को चोरी नहीं करनी चाहिए। चोरी करना एक अपराध तो है ही साथ ही एक बहुत बड़ा पाप भी है।

  1. अपरिग्रह

स्वामी महावीर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि किसी भी मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति चाहिए और वह ईश्वर से मिलना चाहता है तो उसे कभी भी धन इकट्ठा करके नहीं रखना चाहिए, क्योंकि जब तक हमारे पास धन रहता है तब तक हमारी इच्छाओं और लालच का अंत नहीं हो पता और लालची मनुष्य को कभी भी मुक्ति नहीं मिल सकती।

  1. ब्रह्मचर्य

जैन भिक्षु को अपने जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना ही पड़ता है। उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में करना पड़ता है। नारी को न देखना, उससे बात न करना या फिर उस से संसर्ग का ध्यान करना ब्रह्मचर्य के अंतर्गत आता है।


निष्कर्ष :-

दोस्तों, आज के इस लेख में आपने जाना कि Mahaveer ka janm kahan hua tha ?

हम आशा करते हैं कि स्वामी महावीर से संबंधित दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और उम्मीद करते हैं, कि महावीर स्वामी द्वारा दिए गए उपदेशों को भी अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करेंगे।

जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और इस लेख से संबंधित कोई भी सुझाव आपके मन में है या आप हमसे कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं या फिर किसी अन्य विषय पर जानकारी चाहते हैं तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में कमेंट करके जरूर बताएं।


FAQ’s :- 

 Q1. महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ था ?

Ans. महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसवी पूर्व चैत्र शुक्ल के त्रयोदशी तिथि को हुआ था।

Q2. महावीर स्वामी का जन्म कहां हुआ था ?

Ans. वैशाली के नजदीक कुंड ग्राम में महावीर स्वामी का जन्म हुआ था।

Q3. महावीर के उपदेशों का वर्णन करें ?

Ans. स्वामी महावीर द्वारा दिए गए उपदेशों का वर्णन ऊपर के लेख में किया गया है। 
कृपया ऊपर दिए गए आर्टिकल को पढ़ें।

Q4. महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति कब और कहां हुई ?

Ans. महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति 42 वर्ष की आयु में रिजुबालुका नदी के तट पर साल 
वृक्ष के नीचे हुई थी। ज्ञान की प्रति उन्हें 12 साल के कठोर तप के बाद हुई थी।

Q5. महावीर स्वामी का पहला उपदेश क्या था ?

Ans. महावीर स्वामी ने अपने सबसे पहला उपदेश में करुणा, अहिंसा और सत्य की शिक्षा दी है।

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